गोवा मुक्ति दिवस: जब भारतीय सेना ने उखाड़ फेंका था 450 सालों के पुर्तगाली शासन को , जानिए इतिहास
भारतीय नौसेना ने गोवा मुक्ति दिवस (आजादी के 60 वर्ष) के उपलक्ष में किया सेमिनार का आयोजन। जानिए क्या है गोवा मुक्ति दिवस का इतिहास।
गोवा मुक्ति दिवस प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को पूरे देश मे बड़े उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। गोवा मे इस अवसर पर सरकारी छुट्टी भी रहती है। इस दिन को भारतीय सेनाओं के शौर्य व साहस का प्रतीक भी माना जाता है। भारतीय सशस्त्र बलों ने वर्ष 1961 में 450 वर्षों के पुर्तगाली शासन को उखाड़ फेंका था और गोवा को मुक्त कराकर भारत को पूर्ण रूप से आजाद करवाया था। जिसके उपलक्ष में गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोवा में होने वाले मुक्ति दिवस समारोह में शामिल होगे और इसी दौरान वह ऑपरेशन विजय में शामिल रहे पूर्व सैनिकों को सम्मानित करेंगे। तथा गोवा की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान मे आग्वाडा फोर्ट जेल में संग्रहालय का अनावरण भी करेंगे, साथ ही साथ कई विकास कार्य योजनाओं का भी उद्घाटन करेंगे।
क्या था ऑपरेशन विजय?
भारतीय सेनाओं द्वारा गोवा की मुक्ति के लिए चलाए गए ऑपरेशन को ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था। 18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन विजय के तहत पुर्तगाल पर कार्यवाही शुरू की थी। जिसके तहत गोवा बॉर्डर में प्रवेश करते ही भारतीय सेनाओं ने छत्तीसगढ़ के अंदर पुर्तगाली सेना को ढेर कर गोवा को आजाद करवा लिया था। इस ऑपरेशन का ही नतीजा था कि पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसाली ई सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएम थापर के सामने सरेंडर कर दिया था।
गोवा की मुक्ति का इतिहास
वर्ष 1498 में वास्को डी गामा भारत आए थे, जिसके कुछ ही वर्षों पश्चात पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर कब्जा कर लिया गया थाl जिसके पश्चात 1510 तक उन्होंने भारत के कई हिससे को अपना उपनिवेश बना लिया, परन्तु 19वीं शताब्दी के अंत तक पुर्तगाली केवल गोवा के कुछ हिस्से तक ही सिमित रह गए थे। 1947 में भारत से ब्रिटिश शासन की हिंसा व क्रूरता के अंत के बावजूद गोवा लंबे समय तक पुर्तगालियों के प्रभाव से स्वतंत्र नहीं हो पाया था।
स्वतंत्रता के बाद भारत में पुर्तगालियों से अनुरोध किया गया कि वे गोवा के क्षेत्र को खाली कर दें किंतु पुर्तगालियों ने इस बात से अस्वीकार कर दिया था।
पुर्तगाली आसानी से भारत को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे। वहीं एक और मुद्दा यह भी था कि भारत भी किसी प्रकार की प्रत्यक्ष कार्यवाही से हिचक रहा था। जिसका प्रमुख कारण पुर्तगाल का नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन(NATO) का सदस्य होना जिसकी वजह से इस दौरान प्रधानमंत्री नेहरू के द्वारा किए गए सभी कूटनीतिक प्रयास लगभग असफल रहे। किंतु अपने लंबे शासनकाल के दौरान पुर्तगालियों द्वारा जहां गोवा की जनता का खूब दमन किया गया और वहां के लोगों को नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया। वहीं बलात् धर्म परिवर्तन भी कराए गए जिसके कारण वहां की जनता मे मजबूत जन आंदोलन खड़ा हुआ। इस आंदोलन का परिणाम यह रहा कि आखिरकार, दिसंबर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेजी, और ऑपरेशन विजय चलाकर 19 दिसम्बर को 2 दिन की कार्यवाही में ही भारतीय सेना ने गोवा को मुक्त करा लिया गया। जिसके बाद गोवा,दमन और दीव को भारतीय भूमि में सम्मिलित करते हुए, संघ शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
परंतु इस समस्या के बाद जल्द ही एक और समस्या भी देखने को मिली। समस्या यह थी कि महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व में एक तबके द्वारा मांग रखी गई कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए। किंतु बहुत से गोवा वासियों द्वारा अपनी पहचान, संस्कृति और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अलग राज्य की मांग की गई। जिसके बाद साल 1967 के जनवरी माह में केंद्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण करवाया गया, जिसके तहत गोवा के लोगों से पूछा गया कि आप महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं या अलग बने रहना चाहते हैं। बता दें कि यह भारत में एकमात्र ऐसा अवसर था जब जनमत संग्रह द्वारा ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई थी। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना व साल 1987 में गोवा भारत संघ के एक राज्य के रूप में स्थापित हो गया। जिसके बाद से 30 मई को गोवा स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गोवा भारत के दक्षिणी पश्चिमी तट पर स्थित एक क्षेत्र है जिसकी राजधानी पणजी है और इसकी आधिकारिक भाषा कोंकणी है। वर्तमान में गोवा भारतीय संघ में रहते हुए भारत की शोभा बढ़ा रहा है। गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जो पश्चिमी और पूर्वी दोनों संस्कृतियो के साथ अपनी सौन्दर्यता और अदभुत पहचान को प्रदर्शित करता है।