हिंदी दिवस: अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व में पहचान खोती जा रही राष्ट्र भाषा
हिंदी भारत की राज्य भाषा, हमारा गौरव, ‘हिंदी’ प्रेम सौहार्द सामंजस्य एकता की भाषा, हिंदी अंग्रेजो के खिलाफ ‘आजादी’ की भाषा, हिंदी भाषा नहीं हिंदुस्तान है।
हिंदी भारत की राज्य भाषा, हमारा गौरव, ‘हिंदी’ प्रेम सौहार्द सामंजस्य एकता की भाषा, हिंदी अंग्रेजो के खिलाफ ‘आजादी’ की भाषा, हिंदी भाषा नहीं हिंदुस्तान है। फिर भी आज सबसे अलग-थलग है हिंदी, हिंदी जिसके बोलने वालों को हीन भावना से देखा जाता है, हिंदी जिसके बोलने वाले खोजते हैं नोकरी, और बस खोजते ही रह जाते हैं तमाम जिंदगी भर कि हमें भी सम्मानजनक रूप से देखा जाएगा। जिस देश से गणित के शुन्य की शुरुआत हुई, जिसने बताया सूर्य पृथ्वी की नहीं बल्कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, उसी देश की राज्य भाषा में नहीं पढ़ाया जाता विज्ञान और गणित। आज हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़ा कोई गौरवपूर्ण बात नहीं बल्कि ऐसा ही है जैसे किसी के मरने के बाद मृत्यु भोज या पितृपक्ष का आयोजन किया जाए।
हिंदी दिवस :
यह भारत है और यहां हर दिवस की अपनी एक महत्ता और अपना एक इतिहास है। भारत के आजाद होने के उपरांत 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने तय किया कि भारत की राज्य भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी होगी तथा अंक होंगे भारतीय अंकों के स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय रूप। और इस संविधान को 26 नवंबर 1949 को आत्मसात कर 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू संविधान सभा के समक्ष हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देते हुए कहते हैं,” किसी विदेशी भाषा से कोई देश महान नहीं बन सकता, क्योंकि कोई विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।“
संविधान लागू होने के 3 साल बाद यानी 14 सितंबर 1953 को पहला हिंदी दिवस मनाया गया। जिसके साथ ही हिंदी भाषियों को लगा अब हमारे अच्छे दिनों की शुरुआत हो चुकी है, अब सब सरल हो जाएगा अब सभी कार्य हिंदी में होंगे। 14 सितंबर 1953 तो बस इसकी शुरुआत मात्र थी, जो आज तक बदस्तूर चली जा रही है। पर क्या बदला? कहा गया था 15 साल बाद समीक्षा उपरांत अंग्रेजी को पूर्ण रूप से छोड़कर केवल हिंदी राजकाज की संपर्क भाषा रहेगी। समीक्षाएं तो कई हुई पर क्या हिंदी का वैभव, कार्यक्षेत्र और मान बढ़ा या अंग्रेजी की लोकप्रियता कम हुई हो, गोया इन सब समस्याओं के बाद हुआ तो यह है अंग्रेजी दिन दोगुनी रात चौगुनी प्रगति करती रही और हिंदी आज तक हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े तक ही सीमित रही। शायद ही सितंबर के अलावा भारत के किसी अंग्रेजी प्रेमी को यह याद आता हो कि उसकी मातृभाषा तो हिंदी है। हम हिंदी प्रेमी भी सितंबर में ही ‘भारतेंदु’ की इन पंक्तियों को गुनगुनाते हैं,” निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल/ बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।“ और हकीकत भी यही है कि हम हिंदी बोलते हैं पढ़ते हैं इसके बावजूद भी न तो हम हिंदी को उसका सम्मान दिला पाए हैं और ना ही हिंदी हमें काम दिला पाई है कुछ गिनी चुनी नौकरियां हैं अभी तो उसके लिए भी हिंदी में उच्चतम शिक्षा की जरूरत होती है और वही अंग्रेजी थोड़े से में आपका काम चला देती है। आप यह कतई ना समझें कि हम हिंदी दिवस पर हिंदी की ही बुराइयां कर रहे हैं अपितु हम उस सच्चाई की बात कर रहे हैं जो असल में सच है।
अगर हम उत्तर प्रदेश जैसे एक-दो राज्यों को छोड़ दें जिसमें दसवीं के बाद विज्ञान और गणित की पढ़ाई अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी होती है तो आप कितने राज्यों को पाएंगे। जब हम गणित और विज्ञान जैसे विषय जो आज के इस पूंजीवादी युग में नौकरियों का पर्याय बन चुके हैं, ही अंग्रेजी में पढ़ते हैं तो हिंदी वालों के लिए नौकरियां बचती ही कहां हैं। जब आपके पास नौकरी नहीं होगी तो पैसा नहीं होगा पैसा नहीं होगा तो सम्मान कहां से पाओगे। केवल हिंदी दिवस हिंदी पखवाड़ा मना लेने मात्र से ही हिंदी और हिंदी बोलने वालों का उत्थान नहीं होगा अपितु हमें हिंदी को लेकर जमीनी स्तर से नीति निर्माण करना होगा। जिस का सबसे पहला और अहम चरण होना चाहिए प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उत्तम शिक्षा तक हिंदी व प्रांतीय भाषाओं पर जोर दिया जाए उनमें भी विज्ञान और गणित जैसे तकनीकी विषयों की शिक्षा दी जाए।