WHI में भारत की लगातार बिगड़ती स्थिति और कुपोषण से उबरने के लिए किए जा रहे प्रयास
Global hunger index 2021 के अनुसार, 116 देशों में 101वें स्थान पर आ गया है। जबकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2020 में भारत का 94वें स्थान पर था। भारत में लगातार बढ़ती भूखमरी और कुपोषण के आंकड़े चिंताजनक हैं।
वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2021 के अनुसार भारत में एनीमिया ( हीमोग्लोबिन में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) की कमी) और चाइल्ड वेस्टिंग (उम्र व लम्बाई के अनुसार बच्चों में कम वज़न की स्थिति) की समस्या में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है। वहीं भारत में चाइल्ड स्टंटिंग (ठीक से बढ़ने या विकसित होनें में रोक) के मुख्य कारणों की बात की जाए तो इसके प्रमुख कारण गरीबी और पौष्टिक भोजन का न मिलना है। भारत में इन कारणों की वज़ह से 5 वर्ष से कम उम्र कें अनेक बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इन कारणों के अलावा कुपोषण का एक और मुख्य कारण माताओं में पोषण की कमी भी है। UNICEF कें अनुसार, कुपोषित माँ ही कुपोषित बच्चों को जन्म देती हैं, जिससे यह चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।
कुपोषित चक्र के बढ़ने के मुख्य कारण क्या है?
UNICEF INDIA कें अनुसार इस चक्र के बढ़ने के कई कारण हैं, जैसे- किशोरावस्था में बच्चों को जन्म देना, नौ महीने से कम समय में बच्चों का पैदा होना, प्रेगनेंसी के दौरान पौष्टिक भोजन ना मिलना, जन्म के बाद संतान का छः महीने तक स्तनपान ठीक से ना हो पाना, बच्चों को पाँच साल तक पौष्टिक भोजन ना मिल पाना, डायरिया या साँस की परेशानी, साफ सफाई, स्वस्थ वातावरण तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का ना मिल पाना आदि हैं।
ग्लोबल नुट्रिशन रिपोर्ट में भारत के राज्यों की स्तिथि
ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट-2018 के अनुसार दुनिया भर में कुपोषित बच्चों की संख्या 51 करोड़ है, जिनमें से केवल भारत में इनकी संख्या 25 करोड़ है अर्थात् हर तीन में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है। वहीं राज्यों की बात करें तो हर राज्य में इनकी संख्या अलग अलग है। जिनमें महाराष्ट्र (6.16) लाख, बिहार (4.75) लाख, गुजरात (3.20)लाख, आंध्र प्रदेश( 2.76) लाख तथा कर्नाटक (2.49) आदि राज्यों कें आंकड़े शामिल हैं।
ग्लोबल नुट्रिशन रिपोर्ट को मापने कें मानदंड
वर्ष 2012, में वर्ल्ड हेल्थ सभा कें द्वारा छः मुख्य बिंदुओं की पहचान की गयी थी, जिसे 2025 तक पूरा किया जाना है। ये बिंदु कुछ निम्न हैं:-
- 5 साल से कम उम्र कें बच्चों में ग्रोथ या स्टंटिंग कें मामलों में 40% तक की कमी लाने की कोशिश करना।
- 19-50 साल उम्र की महिलाओं में एनीमिया कें मामलों में 50% कमी लाना।
- कम वज़न कें शिशुओं के जन्म कें मामलों को 30% कम करना।
- बच्चों में बढ़ते मोटापे को रोकना।
- जन्म कें शुरूआती छः महीनों में केवल माँ का दूध पिलाने की दर को 50% तक बढ़ाना।
- child wasting कें मामलों में कमी लाकर इसे 5% से कम बनाए रखना।
भारत इन मानदंडो में से किसी एक भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है, वहीं महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (women and child development ministry) नें चिंता जाहिर कि हैं, कि कोरोना महामारी के कारण गरीब लोगों में स्वास्थ्य और पौष्टिक संकट बढ़ा है। क्योंकि, इस दौरान सभी स्कूल बंद थें, जिससे मिड-डे-मील सेवाएं लम्बे समय तक बंद रहीं। परिणामस्वरुप, मिड डे मील पर निर्भर रहने वाले गरीब बच्चे प्रभावित हुए हैं।
चाइल्ड वेस्टिंग पर ध्यान न देने पर भविष्य में दिखेंगे दुष्प्रभाव
चाइल्ड वेस्टिंग ग्रोथ पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में अनेक प्रकार के दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे। जिनमें, बच्चें का ठीक से ग्रो नहीं करना, बच्चों का मानसिक और शरीरिक विकास रुक जाना, बच्चों का स्कूल में ख़राब प्रदर्शन आदि प्रमुख माने जा सकते हैं। विकासशील देशों द्वारा विकास के लक्ष्यों को हासिल नही कर पाना और वैश्विक स्तर पर देशों का ख़राब प्रदर्शन भी इस दिशा में डरावनी छवि को जन्म देता है।
सरकार द्वारा निवारण के लिए उठाए गए कदम
1. नीति आयोग ( NITI AAYOG ) द्वारा “ कुपोषित मुक्त भारत“ 2022 कें लक्ष्य के अनुसार, केंद्र सरकार 1 से 7 सितम्बर तक राष्ट्रीय पोषण कार्यक्रम मनाती हैं। जिसका लक्ष्य स्तनपान कराने वाली महिलाओं में पोषण सम्बंधित परिणामों में और अधिक सुधार लाना है।
2. विशेष पोषण कार्यक्रम (Special Nutrition programme) कें तहत आंगनबाडी, आशा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक केंद्र, आदि हैं, जिसमें महिलाओं, लड़कियों, बच्चों को खाने कर आहार दिया जाता हैं।
3.मिड डे मील योजना।
4. गेहूं आधारित पोषण कार्यक्रम।
5. बलवाड़ी पोषण कार्यक्रम।
इसी के साथ, भारत में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता, महिला सशक्तिकरण, प्रशासन की ओर से ध्यान देने तथा जनता को अच्छे व पौष्टिक आहार मुहैया करवाने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।