अनाथ बच्चों की मां पद्मश्री सिंधुताई को पुणे में राजकीय सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई

Sindhutai Sapkal: सिंधुताई सेफ्टीसीमिया नाम की बिमारी से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीनों से उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में चल रहा था। मंगलवार (4 जनवरी) को दिल का दौरा पड़ने से उनकी सायं 8:10 बजे मृत्यु हो गई। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

January 5, 2022 - 18:40
January 5, 2022 - 19:30
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अनाथ बच्चों की मां पद्मश्री सिंधुताई को पुणे में राजकीय सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई
sindhutai:gettyimages

"अनाथ बच्चों की मां" कही जाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सिंधुताई सपकाल का आज निधन हो गया। 73 साल की सिंधु सतकाल (Sindhutai Sapkal) को लोग अक्सर सिंधुताई या मां कहकर पुकारते थे। महाराष्ट्र में सिंधुताई को मदर टेरेसा कहा जाता था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अनाथ बच्चों की देखभाल और सेवा में गुजार दी थी। उन्होंने लगभग 1400 से भी अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया और उनका अच्छे से पालन-पोषण किया था। सिंधुताई के इस नेक काम को देख कर उन्हें पिछले साल सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। इसके अलावा सिंधुताई को सामाजिक संस्थाओं द्वारा बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

सिंधुताई सेफ्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीनों से उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में चल रहा था। मंगलवार (4 जनवरी) को दिल का दौरा पड़ने से उनकी सायं 8:10 बजे मृत्यु हो गई। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
सिंधुताई के अचानक निधन पर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपना शोक प्रकट किया, वहीं  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर अकाउंट पर सिंधुताई मां के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया है।

सिंधुताई और उनका बचपन

सिंधु सतकाल का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के चरवाहे परिवार मे हुआ था। गरीब परिवार से होने के कारण उनका पूरा बचपना हमेशा कष्टों में बीता। सिंधु ने किसी तरह चौथी क्लास तक पढ़ाई पूरी कर ली थी। जब सिंधु नौ साल की थी तभी उनका विवाह बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ कर  दिया गया था। सिंधु शादी के बाद भी पढ़ना चाहती थी, परंतु उन्हें पढ़ने नहीं दिया गया और उनका पढ़ने का सपना अधूरा रह गया। सिंधु ताई के साथ पढ़ाई के अलावा अन्य बहुत से छोटे-मोटे मामले ऐसे थे जिसके लिए उन पर काफी अन्याय हुआ। परेशान होकर सिंधु ताई द्वारा अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाने पर उन्हें गर्भावस्था में ही ससुराल वालों द्वारा घर से निकाल दिया गया।

अकेले ही बेटी को दिया जन्म

ससुराल और मायके से निकाले जाने के बाद सिंधु ताई ने अपनी कोख में बच्चा लिए दर-दर की ठोकरें खाते हुए रेलवे स्टेशन पर भीख मांग कर अपना गुजारा किया‌। गर्भावस्था जैसे संघर्षमय जीवन के बीच उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया, जहां उन्हें अपने गर्भनाल को पत्थर की सहायता से काटना पड़ा।

सिंधुताई ने अपना और नवजात बच्ची का पेट भरने के लिए रेलवे स्टेशनों पर भीख मांग कर गुजारा किया। यह उनके जीवन का ऐसा समय था, जब सिंधु ताई को हजारों अनाथ बच्चों की मां बनकर उनका पालन पोषण करने का ख्याल आया। सिंधुताई के जीवन में एक समय ऐसा भी आया की उन्होंने अपने इस जीवन से हार मानकर अपनी बच्ची को मंदिर में छोड़ दिया। हालांकि बाद में उन्हें रेलवे स्टेशन पर मिले एक अनाथ बच्चे को गोद में उठाने पर मन में अनाथ बच्चों की जिम्मेदारी उठाने का ख्याल आया। जिसके बाद  ताई अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगने लगी।

सिंधु ताई को मिले हैं कई सम्मान

सिंधुताई मां को इस नेक काम के लिए अब तक लगभग 700 से भी ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। पिछले साल सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है‌। सम्मान में मिलने वाले पैसे को सिंधुताई अपने गोद लिए हुए अनाथ बच्चों के पालन-पोषण में खर्च करती थी। सिंधुताई को डी वाई इंस्टिटूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की तरफ से डाॅक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है। सिंधु ताई के जीवन पर आधारित एक मराठी फिल्म सिंधुताई सपकाल बनी थी, जो 2010 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को विदेशों में भी रिलीज किया गया था, जिसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में दिखाया जा चुका है।

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