Manipur Violence: आखिर ऐसा क्या हुआ मणिपुर में जिसने मैतेई और नगा- कुकी समुदाय के लोगों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया

Manipur Violence News: मणिपुर में मुख्य रूप से तीन जातियां निवास करती हैं। मेइती, नागा और कूकी। मेइती यहां की बहुसंख्यक मूल निवासी है जो कि कुल जनसंख्या का 53 प्रतिशत है। यह इंफाल के घाटी इलाकों में बसे हुए है जिसका क्षेत्रफल राज्य के कुल क्षेत्रफल का महज़ 10 प्रतिशत है। इनकी भाषा मेईतिलोन है जिसे मणिपुरी भाषा भी कहा जाता है। इसे संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत मान्यता प्राप्त है। 

May 9, 2023 - 12:18
May 9, 2023 - 19:35
 0
Manipur Violence: आखिर ऐसा क्या हुआ मणिपुर में जिसने मैतेई और नगा- कुकी समुदाय के लोगों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया
Manipur Violence

Manipur Violence: मणिपुर एक ऐसा राज्य है जो अपने आर्किड फूलों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां ऑर्किड की 500 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। इसके अलावा यहां के शिरोइ पहाड़ियों में मानसून के दौरान शिरोइ नाम का एक दुर्लभ फूल भी पाया जाता है जो कि पूरे विश्व में केवल मणिपुर में ही पैदा होता है। इसे सूक्ष्मदर्शी से देखने पर सात रंग दिखाई देते हैं। इसकी इस खूबी को देखते हुए 1948 में लंदन स्थित रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी ने इसे मेरिट प्राइज से भी नवाजा था।

लेकिन वह दौर कोई और ही था। अब तो ऐसा लगता है मानो मणिपुर अपने इन फूलों की सुगंध खोता जा रहा है। कभी आर्किड फूलों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध मणिपुर आज आग की लपटों से घिरा हुआ है। देश का "आर्किड बास्केट" कहे जाने वाले इस राज्य में नफरत की यह आग इस तरह फैली कि हजारों लोगों के सर से उनकी छत छिन गई। वह अपना घर छोड़ पलायन को मजबूर हो गए। कितनो के घर जले, कितनो ने अपनो को खोया। मणिपुर में जातीय हिंसा की नफरत से उपजे इस आग ने यहां के फूलों और उसकी सुगंध को भी उजाड़ दिया। कुछ बचा तो वो है तबाही के धुएं में उठती,जलती इंसानियत की बू। 

आखिर ऐसा क्या हुआ मणिपुर में जिसने लोगों को एक दूसरे के खून का प्यासा बना दिया? 

इसको समझने के लिए हमे सबसे पहले यहां की जातीय संरचना को समझना पड़ेगा। मणिपुर में मुख्य रूप से तीन जातियां निवास करती हैं। मेइती, नागा और कूकी। मेइती यहां की बहुसंख्यक मूल निवासी है जो कि कुल जनसंख्या का 53 प्रतिशत है। यह इंफाल के घाटी इलाकों में बसे हुए है जिसका क्षेत्रफल राज्य के कुल क्षेत्रफल का महज़ 10 प्रतिशत है। इनकी भाषा मेईतिलोन है जिसे मणिपुरी भाषा भी कहा जाता है। इसे संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत मान्यता प्राप्त है। 

वहीं बात करें नागा और कुकी जनजाति की तो यह कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत हैं जो कि यहां के पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं। यह क्षेत्र मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 90 प्रतिशत है। इन जातियों की पहचान इनके निवास स्थान से भी होती है। जैसे नागा और कूकी की पर्वतीय क्षेत्र से और मेइती की घाटी से। 

मेइती सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से दोनो जनजातियों से समृद्ध है। मणिपुर की सत्ता में भी शुरू से ही मेइती का वर्चस्व रहा है जिस कारण अक्सर दोनो जनजातियां इसके विरोध में खड़ी रहती है। उन्हे डर रहता है की मेइती अपने ताकत के बल पर उनका दमन न कर दे। इसके अलावा व्यापार मुद्दों को लेकर नागा और कूकी में भी अंतरद्वंद्व चलता रहता है।

अब जानते हैं क्या है हिंसा शुरू होने की मुख्य वजह?

यह विवाद शुरु होता है मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के प्रस्ताव पर सुनाए गए एक फैसले से। न्यायालय ने अपने आदेश में मणिपुर सरकार को 4 हफ़्ते के भीतर इस विषय से संबंधित सिफारिश केंद्र सरकार को भेजने का आदेश दिया था। 

इसके विरोध में नागा और कुकी जनजाति की तरफ से ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ मणिपुर ने 19 अप्रैल को चुड़ाचांदपुर जिले में एक मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान कुछ अज्ञात युवकों ने आगजनी और पथराव शुरू कर दिया। देखते ही देखते इस हिंसा की आंच मणिपुर के अन्य जिलों में भी फैल गई। इंफाल घाटी के कई इलाकों में कुकी आदिवासियों के घरों में तोड़फोड़ की गई। पश्चिम इम्फाल में कुकी बहुल लांगोल क्षेत्र के 500 से अधिक निवासी अपना घर छोड़ लम्फेलपत में सीआरपीएफ शिविर में रहने को मजबूर हो गए।आदिवासी बहुल चुड़ाचांदपुर जिले के करीब 1,000 मेइती लोग क्वाक्ता और मोइरांग सहित बिष्णुपुर जिले के विभिन्न इलाकों में चले गए। हिंसा के कारण 9,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए। मणिपुर से एक अधिकारी ने ANI से किए अपनी बात में इसकी संख्या 16,000 बताई।

सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने बताया कि मणिपुर में अब तक 50 के आस पास की संख्या में लोगों की मृत्यू हो गई है और लगभग 100 से ज्यादा लोग घायल हुए है। इसके अलावा 500 घरों को जलाए जाने की भी सूचना है।

बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए राज्यपाल की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया कि ‘समझाने और चेतावनी देने के बावजूद स्थिति काबू में नहीं आने पर 'देखते ही गोली मारने’ की कार्रवाई की जा सकती है।गृह मंत्रालय की तरफ से यहां रैपिड एक्शन फोर्स’ (RAF) की कई टीम को भी भेजा गया है। इसके अलावा गृह विभाग द्वारा एक आदेश के तहत 5 तारीख को इंटरनेट सेवाएं पांच दिनों के लिए निलंबित कर दी गई है। सेना के एक प्रवक्ता ने बताया कि हालात के दोबारा बिगड़ने की सूरत में कार्रवाई के लिए सेना के 14 ‘कॉलम’ को तैनाती के लिए तैयार रखा गया है। उन्होंने बताया कि सेना और असम राइफल्स ने शांति की बहाली के लिए हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च भी निकला है।गृह मंत्रालय के अनुसार मणिपुर का माहौल अब काबू में है। 

कुकी और नागा इस फैसले का विरोध क्यों कर रहें है?

कुकी और नागा जनजाति के लोगों का कहना है कि मेइती मणिपुर का एक बहुसंख्यक समुदाय है जिसका राज्य के प्रशासनिक मामलों में पहले से ही काफी वर्चस्व है। मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पर मेइती समुदाय के लोग है।वर्तमान मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह भी मेइती समुदाय से हैं। इसके अलावा इस समुदाय के कई वर्गों को अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में भी रखा जाता है। इस पर भी अगर इसे अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में डाल दिया जाय तो इससे अन्य आदिवासी समुदायों का दमन होगा।

अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाने पर मेइती समुदाय इम्फाल घाटी से बाहर के पर्वतीय इलाकों में भी जमीनें खरीद सकता है जो कि मुख्य रूप से जनजातियों के लिए होती है। कोकू और नागा जनजाति के लोगो को डर है कि ऐसा होने पर मेइती समुदाय अपने समृद्ध संसाधनों का उपयोग कर उनसे उनकी जमीनें छीन लेगा। इसलिए इस हिंसा के पीछे की मुख्य वजहों में से एक अपनी जमीन के छीने जाने का डर भी है।

इसके अलावा एक नए कानून के तहत कई जंगलों को रिजर्व्ड जंगलों की श्रेणी में जोड़ा जा रहा है। इससे उस जगह रह रहे कई आदिवासियों के घर उजड़ जायेंगे। ऐसे कानूनों को लाने के कारण मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह की एक एंटी ट्राइबल छवि बन गयी है। इससे जनजातियों में सरकार के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हो रही है जो इस उपद्रव की आग में घी का काम कर रही है। 

मेइती अनुसूचित जनजाति का दर्जा क्यों चाहती है?

मेइती समुदाय का कहना है कि उनकी संस्कृति,भाषा और पुश्तैनी जमीनों की रक्षा के लिए उन्हे जनजाति का दर्जा मिलना बहुत जरूरी है। वह तर्क देते हैं कि 1949 में भारत में विलय होने से पहले वह अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में ही आते थे । उनका मानना है कि 50% से भी ज्यादा की जनसंख्या का राज्य के 10% क्षेत्रफल में सिमट कर रह जाना उनके साथ अन्याय है। वह मानते हैं कि इस फैसले से नाही सिर्फ पर्वतीय और खाड़ी इलाकों में रह रहे अलग अलग जातीय समूहों के बीच का बटवारा खत्म होगा बल्कि मदभेद भी कम होंगे। 

इसके अलावा मेइती नेताओं का आरोप है कि म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद सीमा से सटे चुड़ाचांदपुर जिले में अवैध शरणार्थियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि म्यांमार के एक छोटे हिस्से में सिमटे होने के कारण इस अवैध घुसपैठ से उनकी पुश्तैनी ज़मीनों के छीने जाने का खतरा भी बढ़ जाता है। इससे सुरक्षा के लिए उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। 

मेइती को जनजाति का दर्जा मिल जाने पर मणिपुर एक ऐसा राज्य बन जायगा जहां लगभग सभी जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त होगा। 

क्या है अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की प्रक्रिया?

• राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को सिफारिश भेजना।

• इस सिफारिश पर ट्राइबल अफेयर मिनिस्ट्री जांच करके गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को भेज देती है।

• वहां से मंजूरी मिलने पर इसे अनुसूचित जनजाति की राष्ट्रिय समिति के पास भेजा जाता है।

• वहां से पास होने के बाद अंतिम निर्णय कैबिनेट लेती है।

• कैबिनेट जब इसे मंजूर कर दे तो संसद में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 के संशोधन का बिल पेश होता है।

• लोकसभा और राज्यसभा में बिल पास हो जाने पर राष्ट्रपति द्वारा सहमति की अंतिम मुहर लगते ही किसी समुदाय का नाम अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में जोड़ दिया जाता है।