दीपक पूनिया उर्फ ‘केतली पहलवान’ का ओलंपिक दरवाजे तक पहुंचने का सफर
ओलंपियन बनना हर किसी के भाग्य में नहीं होता, लेकिन दीपक के साथ कुछ अलग था। साल 2019 में, विश्व चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में दीपक ने जीत के बाद ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया और टूर्नामेंट में रजत पदक भी अपने नाम किया। आईए जानते हैं केतली पहलवान का ओलंपिक दरवाजे तक का सफ़र।
दीपक पूनिया उर्फ ‘केतली पहलवान’ का ओलंपिक दरवाजे तक पहुंचने का सफर
साल 2014 का था, जब कुछ बनने की चाह में दीपक पूनिया हरियाणा से दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में आए। किसी दूसरे पहलवान की तरह उनकी भी चाह थी कि देश के लिए ओलंपिक में पदक जीतूं। 86 किग्रा में फ्रीस्टाइल खेलने वाले दीपक को छत्रसाल में कोच वीरेंद्र कुमार का साथ मिला। वीरेंद्र बताते हैं कि शुरुआती समय में दीपक मुझसे बोलता था कि कोच जी मुझे कुछ बनना है। वह बहुत गरीब परिवार से था। उसके पापा दूध बेचते थे। वह चाहता था कि कुछ बनकर अपने घरवालों की मदद करे। ओलंपियन बनना हर किसी के भाग्य में नहीं होता, लेकिन दीपक के साथ कुछ अलग था। साल 2019 में, विश्व चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में दीपक ने जीत के बाद ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया और टूर्नामेंट में रजत पदक भी अपने नाम किया। दीपक की सफलता के बारे में जब भारतीय टीम के पूर्व विदेशी कुश्ती कोच व्लादिमीर मेस्तविरिशविली से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह कई चीजों के एक साथ मिलने से हुआ है। इन सभी चीजों का एक साथ आना जरूरी था। इस खेल (कुश्ती) में आपको चार चीजें- दिमाग, ताकत, किस्मत और मैट पर शरीर का लचीलापन चाहिए। दीपक के पास यह सब है। वह काफी अनुशासित पहलवान हैं। नई तकनीक को सीखने में एक ही चीज बार-बार करने से खिलाड़ी ऊब जाते हैं, लेकिन दीपक जब तक उसे पूरी तरह से सीख नहीं लेता तब तक दो, तीन या चार दिनों तक करता रहता है।
अपनी सफलता के बारे में दीपक कहते हैं कि इसका राज अनुशासित रहना है। मुझे दोस्तों के साथ घूमना पसंद है। मुझे जूते, शर्ट और जींस पसंद है लेकिन मैं हमेशा ट्रैक-सूट में रहता हूं। टूर्नामेंट के बाद जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं बाहर जाकर अपना मनपसंद खाना खाता हूं। लेकिन छुट्टी खत्म होने के बाद उसके बारे में सोचता भी नहीं हूं। उसके बाद कुश्ती और प्रशिक्षण ही मेरी जिंदगी होती है।
दीपक की उपलब्धि के बारे में उनके छत्रसाल स्टेडियम के कोच वीरेंद्र कुमार कहते हैं कि दीपक अपने विपक्षी पहलवान को थका कर हराता है और मौका मिलने पर अटैक भी करता है। कोच वीरेंद्र बताते हैं कि पिछले साल दीपक अपनी मां और दादी की मौत से टूट गया था। फिर काफी समझाने के बाद उसने मैट पर वापसी की।
दीपक की ओलंपिक की तैयारी के बारे कोच वीरेंद्र बताते हैं कि उसे विपक्षी पहलवान को थका कर हराने वाला अभ्यास नहीं मिल पा रहा है। यह चिंता का विषय है। ओलंपिक में उसके वर्ग में 15 पहलवान हैं और वह उनके वीडियो देखकर तैयारी कर रहा है। लेकिन असली परीक्षा मैट पर ही होती है क्योंकि ओलंपिक में कोई भी खिलाड़ी कम नहीं होता है।
अपनी तैयारी के बारे में दीपक पूनिया बताते हैं, “मैंने ओलंपिक के लिए कड़ी मेहनत की है। अपने विपक्षी पहलवानों के खिलाफ भी तैयारी की है। मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ दूंगा। मुझे उम्मीद है कि मैं पदक लेकर आऊंगा।”
दीपक को बचपन से ही दूध पीना पसंद है और वह गांव में ‘केतली पहलवान’ के नाम से जाने जाते हैं। ‘केतली पहलवान’ के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। एक बार गांव के सरपंच ने केतली में दीपक को दूध पीने को दिया। दीपक ने उसे एक बार में ही पूरा पी लिया था। इसी तरह दीपक ने एक-एक करके दूध से भरी चार केतली पी डाली, जिसके बाद से उनका नाम ‘केतली पहलवान’ पड़ गया। आज भी गांव वाले उन्हें ‘केतली पहलवान’ नाम से ही बुलाते हैं।
सुशील कुमार की सलाह के बाद दीपक ने दी दस्तक
दीपक पूनिया ने जब कुश्ती शुरू की,तब उनका लक्ष्य इसके जरिए नौकरी पाना था। लेकिन दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने दीपक को छोटी चीजें छोड़कर बड़े लक्ष्य पर ध्यान देने का सुझाव दिया। साल 2016 में, दीपक ने अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में दस्तक दी। वह पहली बार चैंपियनशिप खेलने गए और विश्व कैडेट चैंपियन बन कर वापस आए। कोच वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि विश्व कैडेट चैंपियनशिप जीतने के बाद दीपक ने मुड़कर नहीं देखा। खास बात यह है कि वह किसी बड़ी प्रतियोगिता से खाली हाथ नहीं लौटा है। वह अपने से तगड़े पहलवानों को भी मात दे सकता है। अभ्यास मैचों में दीपक ऐसा कर चुका है।
दीपक पूनिया की उपलब्धियों पर एक नजर
विश्व कैडेट चैंपियनशिप 2016 (स्वर्ण)
एशियन जू. चैंपियनशिप 2018 (स्वर्ण)
जू. विश्व चैंपियनशिप 2018 (रजत)
जू. विश्व चैंपियनशिप 2019 (स्वर्ण)
विश्व चैंपियनशिप 2019 (रजत)
एशियनचैंपियनशिप 2019 (कांस्य)
एशियन चैंपियनशिप 2020 (कांस्य)
कुश्ती से कमाई
दीपक पूनिया हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले हैं। 22 साल के दीपक ने कहा कि, “2015 तक मैं जिला स्तर पर भी पदक नहीं जीत पा रहा था। मैं किसी भी हालत में नतीजा हासिल करना चाहता था ताकि कहीं नौकरी मिल सके और अपने परिवार की मदद कर सकूं। मेरे पिता दूध बेचते थे। वह काफी मेहनत करते थे।” मैट पर मिली सफलता से दीपक के परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। साल 2018 में वो भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर तैनात हुए हैं। दीपक ने एसयूवी कार भी खरीदी है। दीपक कहते हैं कि मुझे यह नहीं पता कि मैंने कितनी कमाई की है क्योंकि मैंने कभी उसकी गिनती नहीं की लेकिन यह ठीक-ठाक रकम है।