नही रही अब हमारे बीच स्त्रीलोक की सबसे सशक्त आवाज कमला भसीन
स्त्री लोक की सबसे बुलंद आवाजो में से एक कमला भसीन ने आज सुबह तीन बजे अंतिम सांसे ली, कमला जी लंबे समय से कैंसर से जूझ रही थी। पितृसत्ता की कड़ी विरोधी रही कमला जी ने न केवल भारत अपितु पूरे दक्षिण एशिया में नारीवादी आंदोलनों का जयघोष किया । उनके व्यक्तितत्व की सकारात्मकता और स्त्री स्थिती सुधार आंदोलनो में उनकी भूमिकाएं हमेशा स्मरणीय रहेंगी।
"कल कल करती व्याकुल सरिता "
उथल पुथल बढ़ जाती है
बाधाओ से लडते -2
सागर में मिल जाती हैं। "
उपरोक्त लिखी पंक्तियां भले ही किसी अज्ञात कवि द्वारा रचित हो , पर ये पंक्तियां सटीक बैठती है मशहूर नारीवादी कमला भसीन पर, जिन्होने सुबह 3 बजे कैंसर से जूझते हुए अंतिम सांसे ली। कमला भसीन स्त्री आलोक की सबसे बुलंद और निर्भीक आवाजो में से एक थी। पितृ सत्ता की नींव हिलाती उनकी सशक्त आवाज़ की गूंज हमेशा समाज में बरकरार रहेगी।
"कुदरत ने मर्द और औरत में
फर्क कम कर दिए है,
और समानताएं ज्यादा
मर्द और औरत में फर्क केवल प्रजनन के लिए दिए हैं।
ये कुदरत ने नही बताया था कि नौकरी कौन करेगा
और खाना कौन बनाएगा।"
~ कमला भसीन
अपनी बेबाकी और जिंदादिली के हुनर से उन्होने जहाँ करोड़ो महिलाओं को प्रेरित किया तो वही समाज के हजारों पुरुषो को पितृसत्ता का असली चेहरा दिखाने का भी काम किया। खुशमिजाज रहने वाली कमला भसीन ने अपनी विचारधारा से समाज में एक बडी वैचारिक क्रान्ति लाने का काम किया, उन्होने महिलाओं को चेताया कि हमारी लड़ाई पुरुषो से न होकर पितृसत्तात्मकता से है। पितृसत्तात्कता ने जितनी क्षति महिलाओं को पहुँचाई है उससे कहीं ज्यादा पुरुषों को।
कमला भसीन न केवल भारत में अपितु दक्षिण एशिया में एक लोकप्रिय चेहरा थी। मंचो पर अपने उदाहरणों से अक्सर श्रोताओं को व्यंगय का घूंट पिलाती और गुदगुदाती कमला भसीन एक बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी थी। एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक सशक्त लेखिका, कवि और महिला स्थिती सुधार आंदोलनो में क्रियाशील रहने वाली कमला भसीन ने एक छोटे वक्त में एक बड़ा परिवर्तन कर दिखाया।
सादगी और बड़ी सरलता से बात रखने वाली कमला भसीन सत्यमेव जयते जैसे कई बड़े टीवी मंचो पर अपना पक्ष रखती हुए नजर आ चुकी है। साथ ही समाज के अंतिम श्रेणी मे खड़े व्यक्ति को भी वो पितृसत्ता और जेंडर जैसे शब्दो से अवगत कराना चाहती थी।
अंततः कमला जी का जाना स्त्री समाज के लिए एक बड़ी और अपूर्णीय क्षति है , उनके सशक्त विचार और बुलंद आवाज़ हमेशा एक अमूल्य धरोहर बनकर स्त्री समाज के पास रहेंगे। सदियां उनके विचारो से न केवल प्रभावित होंगी बल्कि उन्हें एक सच्ची नारीवादी महिला के रूप में भी याद रखेंगी।
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