Martyrs' Day 30 January: कौन था नाथूराम गोडसे और क्या हुआ था गांधीजी के साथ उस शाम ?
Shaheed Diwas :1948 की घटना को अंजाम देने से पहले गोडसे खुद को एक गांधी भक्त मानते थे। परंतु साल 1947 का भारत विभाजन, गांधी भक्त गोडसे से देखा नहीं गया और गोडसे को लगता था कि गांधीजी भारत का विभाजन होने नही देंगे लेकिन गांधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार एवं जिन्ना द्वारा रची मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन करने के चलते गांधी भक्त गोडसे का मन बहुत आहत हुआ और गोडसे ने आहत मन से जो निर्णय लिया उसको भारत शायद ही कभी भूल पाए।
Martyrs' Day (शहीद दिवस) : 30 January: आज ही के दिन यानी 30 जनवरी को साल 1948 से हर वर्ष भारतीय राजनीतिक स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि या शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यही वो दिन था जब महात्मा गांधी का निधन हुआ था। जी हां यही वो दिन था जब रामचन्द्र विनायक गोडसे, जिन्हें नाथूराम गोडसे के नाम से जाना जाता है ने 30 जनवरी, 1948 को एक सभा में महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। यह घटना उस दौरान घटित हुई जब जब गांधी जी एक प्रार्थना सभा के लिए नई दिल्ली में तत्कालीन बिड़ला भवन जा रहे थे। इसी वक़्त गोडसे ने गांधी जी पर तीन गोलियां दागीं, जिसके चलते उनकी मृत्यु हो गई।
वहीं सबसे एक और महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि गोडसे ने हत्या के बाद वहाँ से भागने से इंकार कर दिया, जिसके बाद उन्हें वहीं से गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ़्तारी के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और मौत की सजा सुनाई गई। इस हत्या की साजिश में नाथुराम गोडसे अकेला नहीं था, उसने अपने अन्य साथियों नारायण आप्टे और छह अन्य लोगों के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था। वहीं इस घटना के घटित होने के पश्चात सम्पूर्ण भारत एक राष्ट्रिय शोक में डूब गया, क्योंकि यह वो घड़ी थी जिसमें देश जिस इंसान को बापू कहता था उनकी हत्या हो चुकी थी।
वहीं 1948 की घटना को अंजाम देने से पहले गोडसे खुद को एक गांधी भक्त मानते थे। परंतु साल 1947 का भारत विभाजन, गांधी भक्त गोडसे से देखा नहीं गया और गोडसे को लगता था कि गांधीजी भारत का विभाजन होने नही देंगे लेकिन गांधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार एवं जिन्ना द्वारा रची मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन करने के चलते गांधी भक्त गोडसे का मन बहुत आहत हुआ और गोडसे ने आहत मन से जो निर्णय लिया उसको भारत शायद ही कभी भूल पाए।
वहीं बात गोडसे की करें तो गोडसे का जन्म पुणे के बारामती के एक कोंकणी परिवार में हुआ था। जहां उनके माता-पिता ने उनका नाम नाथूराम रखा। नाथूराम के तीन भाई और एक बहन थी, परंतु किन्हीं कारणों से उनके तीनों भाइयों की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी।
बहरहाल गोडसे पर वापिस लौटते हुए उनकी शिक्षा की बात करें तो बारामती के एक स्थानीय स्कूल में पांचवीं कक्षा तक गोडसे ने शिक्षा पूर्ण की तथा उसके बाद आगे की शिक्षा के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें पुणे के एक अंग्रेजी भाषा के स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा दिया। परंतु गोडसे को शायद स्कूल से ज्यादा कुछ और रास आ रहा था और उन्होंने हाई स्कूल छोड़ दिया और एक कार्यकर्ता बन गये।
कहा जाता है कि गोडसे अपने स्कूल के दिनों में महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और उनके मन में महात्मा के प्रति बहुत सम्मान था जिसके चलते उन्होंने साल 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया था। वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद गोडसे ने विनायक दामोदर सावरकर के राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़कर वहाँ भी अपना योगदान दिया। वह अक्सर अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए समाचार पत्रों में लेख लिखते थे वहीं बाद में उन्होंने नारायण आप्टे के साथ मिलकर "अग्राणी" नाम से अपना एक अखबार भी शुरू किया। जहां वह उस अखबार के खुद ही संपादक भी रहे।
वहीं महात्मा गांधी की हत्या के बाद, गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया और शिमला के पीटरहॉफ में पंजाब उच्च न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। इस दौरान साल 1949 में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। वहीं आश्चर्यचकित करने वाला वाकया ये था कि गोडसे को सजा सुनाए जाने के बाद महात्मा गांधी के दो पुत्रों मणिलाल और रामदास गांधी ने गोडसे की सजा कम करने का अनुरोध किया था, परंतु भारत सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया और गोडसे को 15 नवंबर साल 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई और इस तरह से देश के बापू को देश से छीनने वाले नाथूराम के जीवन का अध्याय समाप्त कर दिया गया।
CREDIT: Keshav Ojha