मोरारजी देसाई जीवन परिचय व इतिहास
भारत के इतिहास में यूं तो कई राजनीतिक धुरंधर हुए पर मोरारजी देसाई ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्हें भारत के सर्वोच्च पदक भारत रत्न के साथ पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने-ए-पाक से नवाजा गया।
"है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है"
यह पंक्तियां भले ही डॉ हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखी गई हो, पर मोरारजी देसाई ने इन पंक्तियों को अपने जीवन में सिद्ध कर दिखलाया। 81 वर्ष की उम्र में देसाई भारत के चौथे और पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने और इतिहास रचा।
भारत के इतिहास में यूं तो कई राजनीतिक धुरंधर हुए पर मोरारजी देसाई ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्हें भारत के सर्वोच्च पदक भारत रत्न के साथ पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने-ए-पाक से नवाजा गया।
प्रारंभिक जीवन से क्रांतिकारी बनने तक का सफर:
मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को बलसाड और वर्तमान में (गुजरात ) में हुआ। परंतु उस समय यह स्थान बॉम्बे प्रेजींडेसी के अधीन था।
उनका पूरा जीवन बड़े अभाव में और आर्थिक परेशानियों में निकला। उन्होने पहले पिता को अवसाद में देखा, फिर अपनी जान लेते हुए देखा। आठ भाई बहनो में वो सबसे बड़े थे। घर की संपूर्ण जिम्मेदारीयां उनके जिम्में आ गई थी।
परंतु इतनी कठिन और दयनीय परिस्थितियां भी मोरारजी के बुलंद हौंसले को तोड नहीं सकी।
मुंबई के विल्सन कॉलेज से स्नातक की कक्षा पास कर वो सिविल परीक्षा में न केवल बैठे, उत्तीर्ण भी हुए। और 12 साल डिप्टी क्लेक्टर के पद पर विराजमान रहे । लेकिन गांधी जी के विचारो का जादू उनके सिर चढकर बोलने लगा और उन्होने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कई बार उन्होंने जेल की यात्राएं भी की।
राजनीतिक सफर:
मोरारजी देसाई का राजनीतिक सफर किसी चलचित्र से कम नही रहा । उनके राजनीतिक जीवन में इतने उतार-चढ़ाव आए , कि इसे सूचीबद्ध करना भी टेढ़ी खीर जान पड़ता है। 1930 में सब स्वतंत्रता आंदोलन की लहर गांधी जी के नेतृत्व में चल रही थी, तब इनकी कर्मठता और जुझारूपन को देखते हुए देसाई को गुजरात प्रदेश का सचिव नियुक्त कर दिया गया। यहीं उन्होने भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा की नींव डाली।
शास्त्री जी की आकस्मिक मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, तो मोरारजी देसाई को संतुष्ट करने के लिए उन्हें उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री जैसे बड़े पद दिए गए। परंतु पार्टी के इस फैसले से उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया और कांग्रेस विभाजन में बडी भूमिका निभाते हुए उन्होने कांग्रेस (ओ) में जाने का मन बनाया।
1975 में उन्होने जनता दल की सदस्यता ली, और उनके अनुशासित, अड़ियल स्वभाव और कर्मठता के बल पर उन्हें इंदिरा गांधी के खिलाफ जनता दल द्वारा चुनावी रण में उतारा गया। आपातकाल की मार जेल रही जनता में गुस्से का उबाल था, इसी को अपना हथियार बनाते हुए मोरारजी देसाई 1977 में लोकसभा के चुनावो में भारी बहुमत से जीते, और प्रधानमंत्री बने।
मोरारजी देसाई ने ऐड़ी-चोटी के जोर से प्रधानमंत्री की कुर्सी तो खुद की ओर कर ली, पर अपनी ही पार्टी में उनके विरूद्ध आवाजें उठने लगी वहीं दूसरी तरफ़ चौधरी चरण सिंह से मनमुटाव बढ़ जाने पर उन्होने समय से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया।
प्रधानमंत्री पद पर बने रहते हुए भी देसाई अपने विचारो और बयानों को लेकर राजनीतिक गलियारो में अक्सर बवाल मचाते रहते थे।
मोरारजी देसाई अपने राजनीतिक जीवन में कितने सफल हुए या असफल यह प्रश्न पेंचीदा है, पर जीवन में संघर्षों से निपटने और बुलंद हौसलो से आगे बढने के लिए उन्हे आदर्श के रुप में देखा जा सकता है।