New Parliament Inauguration: सेंगोल क्या है जिसे पीएम मोदी ने नए संसद भवन में स्थापित किया है

विद्रोह, स्वतंत्रता आंदोलन और गणतंत्र की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं में, सेंगोल ने आप्रवासियों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होने और सत्ता के खिलाफ उठने के लिए एक माध्यम प्रदान किया है।

May 30, 2023 - 23:22
July 12, 2023 - 12:48
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New Parliament Inauguration: सेंगोल क्या है जिसे पीएम मोदी ने नए संसद भवन में स्थापित किया है
सेंगोल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के समीप पवित्र सेंगोल को स्थापित कर दिया है। स्थापित करने से पूर्व, संतों ने विधि-विधान, पूजा-हवन, और मंत्रोच्चार के साथ पवित्र सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी को सौंपा। इसके बाद प्रधानमंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष बिरला के साथ लोक सभा अध्यक्ष के आसन के समीप पवित्र सेंगोल को स्थापित किया गया।

सेंगोल आजादी का प्रतीक है 

1947 में तमिलनाडु से लाया गया वही सेंगोल है जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के आस-पास अंग्रेजों द्वारा देश के स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में उपयोग किया गया था। उस समय के प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू को यह सेंगोल सौंपा गया था। इसके पूर्व, रविवार की सुबह, संसद भवन पहुंचने पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोक सभा अध्यक्ष बिरला ने संसद भवन परिसर में स्थित गांधी प्रतिमा के पास जाकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करने का संकल्प लिया। महात्मा गांधी को आदर्श बताते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें प्रणाम किया। इसके पश्चात, वे पूजा-हवन करने के लिए आरंभ किए। इस आयोजन के दौरान भी लोक सभा अध्यक्ष बिरला उनके बगल में बैठे रहें ।

सेंगोल क्या है ?

सेंगोल एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण संपदा है जो हमारे इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। इसे दो अलग-अलग पहलुओं से देखा जा सकता है। एक तरफ, यह अंग्रेजों द्वारा भारत की सत्ता हथियाने का एक माध्यम रहा है। विद्रोह, स्वतंत्रता आंदोलन और गणतंत्र की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं में, सेंगोल ने आप्रवासियों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होने और सत्ता के खिलाफ उठने के लिए एक माध्यम प्रदान किया है।

दूसरी ओर, पंडित नेहरू ने तमिलनाडु से आए सेंगोल को स्वीकार किया था। यह प्रतीत होता है कि वे सेंगोल को एक सांस्कृतिक और सामाजिक रंगमंच के रूप में देखते थे। उन्होंने इसे एक संगठित कला और साहित्यीक परंपरा के रूप में मान्यता दी, जो तमिल समुदाय की विशेषताओं और विरासत को प्रकट करती है।