सुमित्रानंदन पंत जन्मदिन विशेष : जब अंग्रेजी कवि कालरिज और शैली से प्रभावित होकर पंत लंबे बाल रखने लगे थे
Sumitranandan Pant: सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई सन् 1900 को अल्मोड़ा के कौसानी में हुआ था। पंत अपने जन्म के 6 घंटे बाद ही अपनी मां को खो चूके थे। जिसके चलते पंत का समय ममता के अभाव में हिमालय की गोद में बीता और वे प्रकृति से इतने एकात्म होते चले गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब पंत प्रकृति के हो गए या प्रकृति उनकी हो गयी।

प्रकृति के सुकुमार कवि और हिंदी छायावाद काव्यधारा के स्तंभ सुमित्रानंदन पंत(Sumitranandan Pant) का जन्म 20 मई सन् 1900 को अल्मोड़ा के कौसानी में हुआ था। पंत अपने जन्म के 6 घंटे बाद ही अपनी मां को खो चूके थे। जिसके चलते पंत का समय ममता के अभाव में हिमालय की गोद में बीता और वे प्रकृति से इतने एकात्म होते चले गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब पंत प्रकृति के हो गए या प्रकृति उनकी हो गयी। उनकी कविताओं में नदी, झरना,पेड़, पल्लव, पवन, गगन, ऊषा, पक्षी, बर्फ़, पहाड़ आदि सहज रूप में मिलते हैं और मन को मोह लेते हैं। पंत को पढ़ने से पाठक की एक यात्रा शुरू होती है प्रकृति के साथ और प्रकृति का अनुभव करता हुआ पाठक प्रकृति से प्रेम करने लगता है।
प्रथम रश्मि का आना रंगीणी
तूने कैसे पहचाना ?
कहां कहां हे बाल विहंगिणी!
पाया तूने वह गाना?
सोई थी तू स्वप्न निड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊंघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी से जुगनू नाना ।
पंत का आरंभिक जीवन
माता की मृत्यु होने के कारण बालक पंत अपनी दीदी के घर रहे तथा गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्मोड़ा से उनकी पढ़ाई की शुरुआत हुई। यहीं उन्होंने अपना नाम स्वयं बदलकर गोसाईदत्त से सुमित्रानंदन पंत कर लिया था। इसके बाद उन्होंने बनारस और फिर इलाहाबाद में अपनी शिक्षा ग्रहण की। पंत 7 साल की उम्र में अपनी चौथी कक्षा से ही काव्य रचना करने लगे थे।
साहित्य सृजन का सफर
पंत अपने सृजन के शुरुआती दौर में रोमांटिसिज्म से प्रभावित हुए थे। वे खुद मानते हैं कि शैली, वर्ड्सवर्थ, कीट्स आदि का प्रभाव उन पर पड़ा। इस समय पंत इलाहाबाद में थे और वहीं वे हिंदी में रोमांटिक रचनाएं करने लगे और यहां तक कि कालरिज शैली जैसे लंबे बाल भी रखने लगे थे। पंत सिर्फ प्रकृति के कवि ही नहीं विद्रोह के भी कवि हैं।
साल1926 में उनका पल्लव काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। पल्लव की भूमिका को छायावाद का घोषणा पत्र कहा जाता है। गांधीजी से मिलने के बाद पंत गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, इसके बाद वे मार्क्सवाद और फिर रचना कर्म के अंतिम दौर में वे अरविंद दर्शन से प्रभावित हुए थे। उनकी कलम 28 दिसंबर 1977 को रूक गई और हिंदी कविता का एक दीपक बुझ गया।
पंत सेलिब्रेटेड पोएट रहे हैं तथा उन्हें अनेकों सम्मान भी प्राप्त हैं जिनमें पद्मभूषण(1961) ,भारतीय ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी(1960) आदि शामिल हैं। यह भी कहा जा सकता है कि एक बार जो उनकी प्रकृति संबंधी कविताओं को पढ़ ले वह प्रकृति को न चाहने लगे ऐसा हो ही नहीं सकता है।