जब दिल्ली हाट के झुमकों ने कराया भारत-भ्रमण

ऐसे ही झुमके पहनें स्नेहा भी रोज निकलती है, अपनें हाॅस्टल से बाहर काॅलेज की ओर। एक रोज जब वो सफेद कुर्ती और कानों में काले झुमके डालकर काॅलेज की ओर बढ़ी, तो लोगों की निगाहें उस पर टिक गई। टू बी मोर प्रिसाइज , उसके कानों पर। अब उसकी सफेद ड्रेस की वजह से झुमके दमक रहे थे, या काले झुमकों की वजह से उसकी ड्रेस, ये तो खुदा जानें लेकिन रुक-रक कर लोग उसके झुमकों पर ही जमें जा रहे थे। 

March 8, 2021 - 18:38
January 2, 2022 - 06:28
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जब दिल्ली हाट के झुमकों ने कराया भारत-भ्रमण
झुमके

झुमका  
    भले ही झुमका बस कानों का एक आभूषण है, लेकिन पहनने के बाद तो वो शरीर का एक अभिन्न अंग बन जाता है। शर्म औरत का गहना हो सकता है , मगर वो झुमके को टक्कर थोड़े ही दे पाएगा। झुमकों के आगे बड़े-बड़े आशिक घूम गए। जिन कानों नें झुमके सम्भाले वे नसीबवाले झूम गए। झुमके जब कानों में हिलते हैं ,तो कान के कनेक्शन फैलने लगते है। झुमके को पसन्द करने वालो की बढती मांग का ही ये असर है कि आप किसी भी प्रसिद्ध बाजार जाइए या किसी पर्यटक स्थल, वहां आपको एक से एक बढिया झुमके बिकते दिख जाएंगे। दिल्ली मे भी झुमके बेचने वालों के कई अड्डे है। दिल्ली हाट उनमें से एक है। दिल्ली हाट की और भी कई खूबियां है। युवतियों को वहां पर साज-श्रृगांर की कई मनचाही चीजें मिल जाती है। झुमके तो जरूर मिल जाते हैं

     ऐसे ही झुमके पहनें स्नेहा भी रोज निकलती है, अपनें हाॅस्टल से बाहर काॅलेज की ओर। एक रोज जब वो सफेद कुर्ती और कानों में काले झुमके डालकर काॅलेज की ओर बढ़ी, तो लोगों की निगाहें उस पर टिक गई। टू बी मोर प्रिसाइज , उसके कानों पर। अब उसकी सफेद ड्रेस की वजह से झुमके दमक रहे थे, या काले झुमकों की वजह से उसकी ड्रेस, ये तो खुदा जानें लेकिन रुक-रक कर लोग उसके झुमकों पर ही जमें जा रहे थे।  जब वो काॅलेज पहुंची तो उसे देखते ही लड़कियों को याद आया लगा कि उनके पास तो काले झुमके ही नहीं है। उनमें से कई नें तो उसी दिन काले झुमके लानें का प्लान बना डाला। जब लड़कों नें स्नेहा को देखा, तो बस देखते रह गए। अब बगल से इंग्लिश वाली मैडम निकल जाएं या चाहे खुद प्रिंसिपल। वे अड़े रहे। स्नेहा के कानों में वे काले झुमके उसकी सफेद कुर्ती पर ऐसे खिल रहे थे, मानों वनीला केक पर डार्क चाॅकलेट की कोटिंग। लेकिन लड़कों ने उन झुमको को परमाणु बम की तरह बताया, जिनमें एक अपना हिरोशिमा ढूंढ़ रहा था और दूसरा नागासाकी। जब स्नेहा की सहेली रिया नें उसकी तारीफ करते हुए पूछा कि आज कितनों को धवस्त कर आई तो वो मुस्कुराते हुए बोली,” पता नहीं यार क्यों, आज सब मुझे ही क्यों घूरे जा रहे।" झुमकोें के बारे में पूछनें पर उसनें बताया कि उसकी मम्मी ने उसके लिए बीते दिन ही वे झुमके दिल्ली हाट मार्केट से खरीदें हैं। मार्केट की तारीफ सुनकर रिया ने स्नेहा को उसके साथ चलने को मना लिया। वे दोनों उसी शाम दिल्ली हाट पहुंच गए।

 

 
 
  दिल्ली हाट

 आईएनए मैट्रो स्टेशन के पास स्थित दिल्ली हाट मार्केट अपनी साज -सज्जा के लिए प्रसिद्ध है। इस मार्केट मे प्रवेश लेने के लिए टिकट लेना होता है। जैसे ही वे दोनों टिकट लेकर हाट के अन्दर पहुंचे, एकदम से बदला हुआ माहौल देखकर, वे थोड़ा असहज हो गए। बाहर के शोर शराबे के मुकाबले अन्दर अधिक शान्ति थी। शुरू मे ही उन्हें साज-श्रृंगार की वस्तुएं दिखाई पड़ने लगी। वहां घरों मे सजाने लायक लकड़ी के शो-पीस से लदी हुई कई दुकानें थी। थोड़ी आगे जाकर उन्हें झुमके की दुकानें भी दिखनें लगी। रिया को उसकी मंजिल मिल चुकी थी। चार से पांच दुकानों पर झुमके नापसन्द करने के बाद, आखिरी मे उसने दो जोड़ी झुमके खरीद लिए। उनमें से एक जोड़ी झुमके रिया ने वही बदल लिए और पुरानें झुमके बैग में डाल दिए। स्नेहा से भी एक जोड़ी झुमका खरीदे बिना रहा नही गया। अपनी पसन्द के झुमके पाकर दोनों के चेहरे पर निखर उठे।

 

 

    झुमको की खुशी कम भी नहीं हुई थी, कि उनके सामने एक-एक करके कई सुन्दर-सुन्दर दुकानें आने लगी। ये दुकाने भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों का साक्षात् दर्शन थीं। उनमे जो वस्तुएं मिल रही थी, वे अपनी-अपनी क्षेत्रीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रही थी। इनमे दक्षिण भारत से लेकर आसाम और बगांल तक की वस्तुुकला और हस्तकला की छवि देखने को मिल रही थी। भारत के लगभग हर सूबे की मुख्य वस्तुए देखी जा सकती थी। महाराष्ट्र की कोल्हापुरी चप्पल हो या पहाड़ी कपड़े , वहां पर इन सभी का भण्डार लगा हुआ था। इसके अलावा बर्तन, बैग, शाॅल, हैण्ड क्राफ्ट, चादरे और इत्र-परफ्यूम भी दुकानों में सुन्दर ढ़ंग से सजे हुए थे।
                                                                                                                            
 

 

राजस्थानी वस्तुएं



गुलदस्ते

 

  बक्सेे

 

सन्दूकें
 

साउथ इंडिसन डोसा

दिल्ली हाट के अन्दर कुछ ढ़ाबे और कैफे भी थे जो अपने-अपने क्षेत्र के भोज की विशेषता प्रकट कर रहे थे। दक्षिण भारत मे चाव से खाए जाने वाले डोसे की एक दुकान के आगे स्नेहा के पैर टिक गए। गरम -गरम डोसे के ऊपर पिघलते मकख्न की महक ने उन्हे दो डोसे का आर्डर देने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने डोसा खाया और पूरी शाम हाट घूमनें मे सार्थक कर दी। वे दोनो खुश थे कि झुमकों के बहाने ही सही उन्हें दिल्ली हाट पर भारत की विविधता को पास से देखने का मौका मिला।

 

 

दिल्ली हाट एक प्रतिष्ठित मार्केट है। वहां विदेशी भी इस उद्देश्य से आते हैं कि पूरे भारत की प्रमुख संस्कृतियों की चीजें उन्हें एक ही स्थान पर मिल जाए। इसके अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों से भी लोग वहां दिखाई पड़ते हैं। हाट का अर्थ ही बाजार ही होता है। बाजार भी मधुशाला की तरह ही है जो बिना किसी भेदभाव के सबका स्वागत करता है। वह आपकी जरूरतों को पूरा करता है और अगर वो हाट दिल्ली हाट जैसा हो तो एक छोटा सा भारत भ्रमण भी करा ही देता है। आप भी अब हो ही आइए एक बार दिल्ली हाट और अगर जा चुके हैं तो दोबारा जानें से परहेज तो नहीं ही करेंगे। जब भी वहां जाइए तीन-चार जोड़ी झुमके जरूर खरीद लाइए। अरे! उनके लिए ना सही तो घरवालों के लिए ही सही। अब आज नहीं तो कल वे काम जरूर आएंगे और अगर कुछ नहीं तो कमरे मे ही कील लगा कर टांग दीजिए और कहिए….मोहब्बत जिन्दाबाद !!! 

 

Abhishek Abhishek, contributing writer on The Lokdoot, has interest over Tech, Auto and Aviation Sector. He's also fond of writing Features.