भारत में अगर क्रिकेट धर्म है, तो महिला क्रिकेट से भेदभाव क्यों ?
क्रिकेट को “जेटलमेंस” गेम कहा जाता है। जेंटलमेन कहकर इस खेल को पुरुष का ज़ाती मकान बता दिया गया है। जैसे नेता हर पाँच साल में चुनाव के समय मुँह दिखाई की रस्म अदा करते हैं, उसी तरह हम लोग महिला क्रिकेट केवल विश्व कप के समय ही देखते हैं।
क्रिकेट भारत में खेल नहीं ,एक जज़्बात है। एक खिलाड़ी यहाँ लोगों के लिए भगवान हो सकता है। महान हो सकता है। बेकार हो सकता है। लेकिन ये सारी बातें केवल पुरुष क्रिकेट पर लागू होती हैं। महिला क्रिकेट का ज़िक्र छिड़ते ही क्रिकेट बस एक खेल रह जाता है। ये भेदभाव डराता है। आज अगर मैं पूछ लूँ कि भारतीय पुरुष टीम का कप्तान कौन है तो शायद सेकेंड के आधे हिस्से से भी कम में लोग जवाब बता देंगे। ये चीज़ महिला क्रिकेट के साथ नहीं है। मिताली राज, टेस्ट और वनडे की कप्तान हैं। हरमनप्रीत कौर टी-20 टीम की कप्तान हैं।
इतिहास के पन्नों को पलटें तो हमें पता चलेगा कि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम ने पहला अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच 1932 में खेला था। जबकि महिलाओं ने पहला मैच 1976 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ खेला था। अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद की स्थापना 1958 में हुई। 2005 में इसको अंतरर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) में विलय कर दिया गया। अब पूरी दुनिया का क्रिकेट आईसीसी के ज़िम्मे है।
क्रिकेट को “जेटलमेंस” गेम कहा जाता है। जेंटलमेन कहकर आपने खेल को पुरुष का ज़ाती मकान बता दिया। जैसे नेता हर पाँच साल में चुनाव के समय मुँह दिखाई की रस्म अदा करते हैं, उसी तरह हम लोग महिला क्रिकेट केवल विश्व कप के समय ही देखते हैं। भारत प्रेम बस तभी जागता है। मुझे याद आता है 2017 का विश्व कप जो इंग्लैंड में हुआ था। क्या ग़ज़ब खेली थी भारतीय महिला टीम! फ़ाइनल में जब इंग्लैंड से हमारी टीम हारी तो मन बेचैन हो गया। केवल नौ रन की हार! हालांकि लोगों ने उस हार को जीत की तरह मनाया। भारतीय टीम जब वतन वापस आई तो ख़ूब वाह-वाही हुई। मीडिया में इंटरव्यू आए। मंत्रियों के बयान आए। बीसीसीआई जो भारत का क्रिकेट बोर्ड है उसने भी सभी खिलाड़ियों 50 लाख रुपये दिए। वो दो महीने मानो लग रहे थे कि अब भारत की महिला टीम को भी वो इज़्जत मिलेगी जो पुरुषों को मिलती है। लेकिन कुछ नहीं बदला। एक और उदाहरण देता हूँ। साल 2020 में भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया के साथ टी-20 विश्व कप का फ़ाइनल खेला। मैदान में 80 हज़ार से ज़्यादा दर्शक मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर मौजूद थे।
भारत हार गया। लेकिन फ़िर से नेताओं की तरह हम लोगों ने विश्व कप फ़ाइनल देखा। ऐसा देखा कि महिला क्रिकेट के इतिहास में सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला मैच बना। और क्रिकेट इतिहास में दूसरा सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला मैच। पहले स्थान पर 2019 का पुरुषों का विश्व कप फ़ाइनल है जो इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड के बीच हुआ था। वापस महिलाओं पर आएँ तो उस विश्व कप को देखने में भारतीयों की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत थी। उसके ठीक 378 दिन बाद ,मार्च 2021 में भारतीय महिला टीम मैदान में साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ नज़र आई। ये हमारी गंभीरता दिखाता है। बोर्ड की गंभीरता दिखाता है। इस दौरान पुरुषों के मैच खेले गए थे। आईपीएल भी हो गया। जब 378 दिन बाद भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वापसी करी तो हॉटस्टार पर उसको देखने वालों की संख्या 18 हज़ार थी। ये हमारी गंभीरता का उदाहरण है।
सवाल और उसका कड़क जवाब- वनडे और टेस्ट में महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज से एक बार सवाल पूछा गया था। सवाल था कि उनका पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है? इसपर मिताली ने कहा था कि आप ऐसे सवाल पुरुषों से क्यों नहीं पूछते कि उनकी पसंदीदा महिला खिलाड़ी कौन है? आपको खेल को बराबर रखना चाहिए। ये वही मिताली राज हैं जिन्होंने अपना डेब्यू 26 जून 1999 में किया था। उस वक्त मैं दो महीने का था। 22 साल! सानिया मिर्ज़ा, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु भारत का गौरव हैं। सब उन्हें जानते हैं। मिताली को शायद कम लोग जानते हों। लेकिन वो भी भारत का गौरव हैं। उनका अगर आप रिकॉर्ड देख लें तो पता चलेगा कि महिला क्रिकेट में भी दिग्गज मौजूद हैं। रिकॉर्ड आप ख़ुद देंखे और खोजें महिला क्रिकेट के बारे में।
पैसों को लेकर चलती रहती है गहमा-गहमी- बीसीसीआई, पुरुष टीम को महिला टीम की तुलना में कई गुना ज़्यादा पैसा देता है। मसलन तीन श्रेणियाँ होती हैं। A,B, C . एक श्रेणी जो पुरुषों में होती है लेकिन महिलाओं में नहीं होती, वो है A+ श्रेणी। इसमें सात करोड़ रुपये मिलते हैं।
A श्रेणी में पुरुष खिलाड़ी को पाँच करोड़ रुपये मिलते हैं। वहीं महिला खिलाड़ी को 50 लाख रुपये मिलते हैं। B श्रेणी में पुरुष खिलाड़ी को तीन करोड़ रुपये मिलते हैं। वहीं महिला खिलाड़ी को 30 लाख रुपये मिलते हैं। C श्रेणी में पुरुष खिलाड़ी को एक करोड़ मिलते हैं। महिलाओं के लिए ये रक़म दस लाख हो जाती है। हालाँकि इसको लेकर भी कई विवाद हैं। भारतीय ओपनर स्मृति मंधाना ने कहा था कि क्रिकेट में ज़्यादातर पैसा पुरुष क्रिकेट से आता है। तो बराबर सैलरी की माँग करना बेईमानी है। जिस दिन महिला क्रिकेट से उतना पैसा आने लग गया उस दिन मैं सबसे पहले बराबर सैलरी की माँग करूँगी। लोगों ने उनके इस बयान को काफ़ी सराहा था। मेरे ख़्याल से ये बीसीसीआई की ज़िम्मेदारी है कि वो इस खाई को कम करने का काम करे।
आगे क्या- भारतीय महिला क्रिकेट टीम इस साल ऑस्ट्रेलिया में अपना पहला डे-नाइट यानी पिंक बॉल टेस्ट मैच खेलेगी। जून में इंग्लैंड में सात साल बाद भारतीय महिला टीम कोई टेस्ट मैच खेलेगी। ये अच्छा क़दम है। बीसीसीआई को हर चीज़ पैसों के साथ तोलनी बंद करनी होगी। पुरुषों का आईपीएल कोरोना में भी करवा दिया जाता है। जब बात महिलाओं के आईपीएल की आई तो मुँह मोड़ लिया गया। सिर्फ़ एक कारण पैसा!
महिला क्रिकेट को आगे कैसे लाएं? इसके लिए कुछ खास नहीं करना। महिला क्रिकेट को देखिए। लोगों को बताइए। विराट कोहली के साथ-साथ मिताली राज की भी चर्चा कीजिए। रोहित शर्मा के साथ-साथ स्मृति मंधाना की चर्चा कीजिए। जिस वक़्त समाज में ये समझ आ जाएगी उस दिन महिला क्रिकेट बुलंदियों पर पहुँच जाएगा।